राजमहल में प्रकृति, कविता और विज्ञान का त्रिवेणी संगम

मॉडल कॉलेज, राजमहल में एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सह काव्यगोष्ठी का भव्य आयोजन 

27 मई 2025,मंगलवार

 मॉडल डिग्री कॉलेज राजमहल परिसर मंगलवार को एक ऐतिहासिक एवं बौद्धिक संगम का साक्षी बना,जब प्रकृति, विज्ञान और साहित्य के अद्भुत समन्वय पर आधारित एक दिवसीय सेमिनार सह काव्यगोष्ठी का आयोजन बड़े उत्साह एवं गरिमा के साथ संपन्न हुआ। यह आयोजन पर्यावरणीय चेतना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा साहित्यिक अभिव्यक्ति के बीच सामंजस्य स्थापित करने का सशक्त प्रयास रहा।कार्यक्रम का शुभारंभ: श्रद्धा, स्मृति और प्रेरणा के साथ अमर शहीद सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण और श्रद्धा-सुमन अर्पित कर किया गया। यह क्षण न केवल स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों के प्रति श्रद्धा का भाव था, बल्कि यह दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा हमारे ऐतिहासिक संघर्षों और सांस्कृतिक मूल्यों में निहित है।इस क्रम में कॉलेज के प्राचार्य डॉ. रणजीत कुमार सिंह द्वारा उपस्थित विद्वानों, अतिथियों एवं वक्ताओं का स्वागत अंगवस्त्र, स्मृति-चिह्न और पौधे भेंट कर किया गया। यह प्रतीकात्मक भेंट न केवल भारतीय संस्कृति की गरिमा को दर्शाती है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का सशक्त संदेश भी देती है।यह आयोजन केवल एक सेमिनार या काव्यगोष्ठी नहीं था, बल्कि एक जन-जागरूकता अभियान था—जिसने विज्ञान, साहित्य और समाज को एक मंच पर लाकर पर्यावरणीय जिम्मेदारी का संदेश जन-जन तक पहुँचाया।

वैज्ञानिक सत्र: पारिस्थितिकी और संरक्षण पर संवाद

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता शोभना रॉय, प्रोजेक्ट वैज्ञानिक, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने "जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और गंगा डॉल्फिन का संरक्षण" विषय पर विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि गंगा डॉल्फिन केवल एक प्रजाति नहीं, बल्कि नदी के स्वास्थ्य का सूचक है। यह जीव भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के शेड्यूल-1 के अंतर्गत संरक्षित है, और इसका शिकार करना दंडनीय अपराध है। उन्होंने अपने व्याख्यान में जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के प्रभावों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चर्चा की।

साहित्यिक सत्र: कविता के माध्यम से प्रकृति का संवेदनशील चित्रण

इसके पश्चात स्थानीय कवि एवं शिक्षाविद श्री गोपाल मंडल ने अपनी भावप्रवण कविताओं द्वारा श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। उन्होंने प्रकृति को नारीत्व, मातृत्व और सृजन के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी पंक्ति "प्रकृति ही सृजन भी है और प्रलय भी" श्रोताओं के हृदय में गूंजती रही।

कुमार मनीष अरविंद ने "पृथ्वी की उत्पत्ति और समष्टि भाव" की अवधारणा को काव्यात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी कविता " चल जंगल चल" के माध्यम से वनों की महत्ता, जैव विविधता और मानवीय जिम्मेदारी को सरल और प्रभावशाली भाषा में श्रोताओं के समक्ष रखा।

अकादमिक विश्लेषण: साहित्य और पर्यावरण का आलोचनात्मक दृष्टिकोण

डॉ. राजेश ने "इको-क्रिटिसिज्म" की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि किस प्रकार साहित्य पर्यावरणीय विमर्श का सशक्त माध्यम बन सकता है। उन्होंने राजमहल की पहाड़ियों की भौगोलिक, ऐतिहासिक और पारिस्थितिकीय महत्ता को विद्यार्थियों के समक्ष स्पष्ट किया।

डिजिटल सत्र: भू-पर्यावरणीय ज्ञान का ऑनलाइन समावेश

कार्यक्रम के डिजिटल सत्र में भूगर्भ विशेषज्ञ श्री मनीष तिवारी ने राजमहल क्षेत्र की भू-संरचना, जलवायु परिवर्तन और जीवाश्मीय धरोहरों पर वैज्ञानिक तथ्यों के साथ सारगर्भित प्रस्तुति दी। वहीं प्रो. अंजू सक्सेना ने जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिक असंतुलन और हरित जीवनशैली पर जोर देते हुए कहा कि "स्वच्छ और स्वस्थ जीवन तभी संभव है जब प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित किया जाए।"

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समाधान: पृथ्वी की सतत प्रक्रिया

डॉ. एस. के. सिन्हा ने ‘थ्योरी ऑफ यूनिफॉर्मिटेरियनिज्म’ (समान रूपता का सिद्धांत) को सरल भाषा में समझाते हुए बताया कि पृथ्वी की संरचना सतत और क्रमिक परिवर्तन की प्रक्रिया है। उन्होंने 3R (Reduce, Reuse, Recycle) की अवधारणा को व्यवहारिक उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया और कहा कि "जब तक पृथ्वी स्वस्थ है, तब तक मानवता सुरक्षित है।"

संवाद, संस्कृति और सहयोग

डॉ. रमज़ान अली ने कार्यक्रम का संचालन सरल, सटीक एवं प्रभावशाली ढंग से किया। डॉ. अरविंद कुमार पांडेय ने अतिथियों का परिचय गरिमामय ढंग से प्रस्तुत किया, जबकि डॉ. अमित कुमार ने अपनी ओजस्वी कविता द्वारा पर्यावरणीय चेतना को काव्यात्मक ऊर्जा प्रदान की।

कॉलेज की छात्राओं द्वारा निर्मित आकर्षक रंगोली ने पूरे परिसर को सौंदर्य और संदेश से भर दिया। इशिता दत्ता, रिमी चौधरी, निकिता, शांति कुमारी, नुपुर सेन, सविता कुमारी , नीति कुमारी ,मौसम कुमारी, अनुराधा, सुनीता और रंजना ने इस रंगोली निर्माण में विशेष योगदान दिया। यह रंगोली प्राकृतिक तत्वों, पर्यावरणीय संतुलन और हरित चेतना का प्रतीक बनी।

सक्रिय सहभागिता और व्यापक उपस्थिति

इस आयोजन में सैकड़ों छात्र-छात्राओं, पत्रकारों, स्थानीय गणमान्य नागरिकों और महाविद्यालय के शिक्षकों एवं कर्मचारियों की सक्रिय उपस्थिति रही, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम में उत्साहपूर्वक सहभागिता की और इसे एक जन-चेतना का स्वरूप प्रदान किया।

अध्यक्षीय भाषण और आभार ज्ञापन
अंत में, प्राचार्य डॉ. रणजीत कुमार सिंह ने अध्यक्षीय संबोधन में इस कार्यक्रम को सांस्कृतिक जागरूकता और पर्यावरणीय चेतना का सशक्त उदाहरण बताते हुए सभी वक्ताओं, सहभागियों और आयोजकों को धन्यवाद दिया। उन्होंने समाज को एकजुट होकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान किया।

aaryawart duniya

i 'm Aaryawart duniya , a passionate content creator and digital journalist from Jharkhand. I run the YouTube channel ‘Aaryawarat Duniya’, which covers news and digital stories with a touch of humor and storytelling rooted in desi culture. I'm also the founder and author of the news website aduniya.in. Follow us on Facebook, Instagram, X (Twitter), Pinterest, and more to stay updated with our content and news stories.

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